भारतीय पत्रकारिता की शुरुआत 18वीं सदी में हुई। बौद्धिक लड़ाई का अचूक अस्त्र अख़बार था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और पत्रकारिता ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विदेशी सरकार द्वारा लगाए गए कठोर नियमों और प्रतिबंधों के बावजूद, स्वतंत्रता सेनानियों ने राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और पत्रकारिता का उपयोग एक प्रभावशाली हथियार के रूप में किया, जिससे ब्रिटिश शासन की नींव हिल गई। लेकिन आज की डिजिटल पत्रकारिता के युग मे पत्रकारिता का स्वरुप बदल गया। जिसके कारण उस समय की पत्रकारिता पत्रकारों के समर्पण,योगदान को नई पीढ़ी को जानना समझना अति आवश्यक है। ऐसे संधिकाल में डॉ. सौरभ मालवीय जी की पुस्तक "भारतीय पत्रकारिता के स्वर्णिम हस्ताक्षर " पठनीय महत्वपूर्ण है। महान विभूतियों के कृतित्व व्यक्तित्व को सर्व समाज मे पहुंचाने के इस पुनीत ज्ञानयज्ञ के लिए डॉ मालवीय जी एवं प्रकाशन परिवार को बधाई, शुभकामनाएं!
-साधक राजकुमार
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