राष्ट्रधर्म तो कल्पवृक्ष है,संघ-शक्ति ध्रुवतारा है।
बने जगद्गुरु भारत फिर से ,यह संकल्प हमारा है।।
अटल जी कहते है कि छात्र जीवन से ही मेरी इच्छा सम्पादक बनने की थी लिखने पढ़ने का शौक और छपा हुआ नाम देखने का मोह भी। इसलिए जब एम् ए की पढ़ाई पूरी की और कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ने के बाद सरकारी नौकरी न करने का पक्का इरादा बना लिया और साथ ही अपना पूरा समय समाज की सेवा में लगाने का मन भी,उस समय पूज्य भाऊ राव देवरस जी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया कि संघ द्वारा प्रकाशित होनेवाले राष्ट्रधर्म के संपादन में कार्य करूँगा श्री राजीवलोचन जी भी साथ होंगे।
अगस्त 1947 में पहला अंक निकला और उस समय के प्रमुख साहित्यकार सर सीताराम,डॉ भगवान दास,अमृतलाल नागर,श्री नारायण चतुर्वेदी,आचार्य वृहस्पति व् प्रोफ धर्मवीर को जोड़ कर धूम मचा दी।
(डीएवीपी के अधिकारियों को सोचना चाहिए नोटिस जारी करते समय की राष्ट्रधर्म पत्रिका अर्थात क्या ??)
बने जगद्गुरु भारत फिर से ,यह संकल्प हमारा है।।
अटल जी कहते है कि छात्र जीवन से ही मेरी इच्छा सम्पादक बनने की थी लिखने पढ़ने का शौक और छपा हुआ नाम देखने का मोह भी। इसलिए जब एम् ए की पढ़ाई पूरी की और कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ने के बाद सरकारी नौकरी न करने का पक्का इरादा बना लिया और साथ ही अपना पूरा समय समाज की सेवा में लगाने का मन भी,उस समय पूज्य भाऊ राव देवरस जी के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया कि संघ द्वारा प्रकाशित होनेवाले राष्ट्रधर्म के संपादन में कार्य करूँगा श्री राजीवलोचन जी भी साथ होंगे।
अगस्त 1947 में पहला अंक निकला और उस समय के प्रमुख साहित्यकार सर सीताराम,डॉ भगवान दास,अमृतलाल नागर,श्री नारायण चतुर्वेदी,आचार्य वृहस्पति व् प्रोफ धर्मवीर को जोड़ कर धूम मचा दी।
(डीएवीपी के अधिकारियों को सोचना चाहिए नोटिस जारी करते समय की राष्ट्रधर्म पत्रिका अर्थात क्या ??)
No comments:
Post a Comment