Friday, October 10, 2025

अंधेरे पर प्रकाश की जीत का पर्व है दीपावली

डॊ. सौरभ मालवीय
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अर्थात्
असत्य से सत्य की ओर।
अंधकार से प्रकाश की ओर।
मृत्यु से अमरता की ओर।
ॐ शांति शांति शांति।।
अर्थात् इस प्रार्थना में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की कामना की गई है. दीपों का पावन पर्व दीपावली भी यही संदेश देता है. यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है. दीपावली का अर्थ है दीपों की श्रृंखला. दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' एवं 'आवली' अर्थात 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है. दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है. वास्तव में दीपावली एक दिवसीय पर्व नहीं है, अपितु यह कई त्यौहारों का समूह है, जिनमें धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज सम्मिलित हैं. दीपावली महोत्सव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है. धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है. तुलसी या घर के द्वार पर दीप जलाया जाता है. नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा के लिए दीप जलाए जाते हैं.  गोवर्धन पूजा के दिन लोग गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा करते हैं. भैया दूज पर बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके लिए मंगल कामना करती है. इस दिन यमुना नदी में स्नान करने की भी परंपरा है.

प्राचीन हिंदू ग्रंथ रामायण के अनुसार दीपावली के दिन श्रीरामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे. अयोध्यावासियों ने श्रीराम के स्वागत में घी के दीप जलाए थे. प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार दीपावली के दिन ही 12 वर्षों के वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी हुई थी. मान्यता यह भी है कि दीपावली का पर्व भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी से संबंधित है. दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से प्रारंभ होता है. समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक थीं, जिनका प्रादुर्भाव कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था. उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी-पूजन का त्यौहार बन गया. दीपावली की रात को लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया था. मान्यता है कि दीपावली के दिन विष्णु की बैकुंठ धाम में वापसी हुई थी.
कृष्ण भक्तों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था. एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था. यह भी कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात धन्वंतरि प्रकट हुए. मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं. जो लोग इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन पर देवी की विशेष कृपा होती है. लोग लक्ष्मी के साथ-साथ संकट विमोचक गणेश, विद्या की देवी सरस्वती और धन के देवता कुबेर की भी पूजा-अर्चना करते हैं.

अन्य हिन्दू त्यौहारों की भांति दीपावली भी देश के अन्य राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाई जाती है. बंगाल और ओडिशा में दीपावली काली पूजा के रूप में मनाई जाती है. इस दिन यहां के हिन्दू देवी लक्ष्मी के स्थान पर काली की पूजा-अर्चना करते हैं. उत्तर प्रदेश के मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा पर्व माना जाता है. गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर श्रीकृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.

दीपावली का ऐतिहासिक महत्व भी है. हिन्दू राजाओं की भांति मुगल सम्राट भी दीपावली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया करते थे. सम्राट अकबर के शासनकाल में दीपावली के दिन दौलतखाने के सामने ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाशदीप लटकाया जाता था. बादशाह जहांगीर और मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर ने भी इस परंपरा को बनाए रखा. दीपावली के अवसर पर वे कई समारोह आयोजित किया करते थे. शाह आलम द्वितीय के समय में भी पूरे महल को दीपों से सुसज्जित किया जाता था. कई महापुरुषों से भी दीपावली का संबंध है. स्वामी रामतीर्थ का जन्म एवं महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था. उन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय समाधि ले ली थी. आर्य समाज के संस्थापाक महर्षि दयानंद ने दीपावली के दिन अवसान लिया था.

जैन और सिख समुदाय के लोगों के लिए भी दीपावली महत्वपूर्ण है. जैन समाज के लोग दीपावली को महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं. जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थकर महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी.  इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. जैन धर्म के मतानुसार लक्ष्मी का अर्थ है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ है ज्ञान. इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाया जाता है और लड्डू का भोग लगाया जाता है. सिख समुदाय के लिए दीपावली का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन अमृतसर में वर्ष 1577 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था. वर्ष 1619 में दीपावली के दिन ही सिखों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था.

दीपावली से पूर्व लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई करते हैं. घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य कराते हैं. दीपावली पर लोग नये वस्त्र पहनते हैं. एक-दूसरे को मिष्ठान और उपहार देकर उनकी सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. घरों में रंगोली बनाई जाती है, दीप जलाए जाते हैं. मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. घरों व अन्य इमारतों को बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों की झालरों से सजाया जाता है. रात में चहुंओर प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता है. आतिशबाज़ी भी की जाती है. अमावस की रात में आकाश में आतिशबाज़ी का प्रकाश बहुत ही मनोहारी दृश्य बनाता है.

दीपावली का धार्मिक ही नहीं, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी है. दीपावली पर खेतों में खड़ी खरीफ़ की फसल पकने लगती है, जिसे देखकर किसान फूला नहीं समाता. इस दिन व्यापारी अपना पुराना हिसाब-किताब निपटाकर नये बही-खाते तैयार करते हैं.

दीपावली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, लेकिन कुछ लोग इस दिन दुआ खेलते हैं और शराब पीते हैं. अत्यधिक आतिशबाज़ी के कारण ध्वनि और वायु प्रदूषण भी बढ़ता है. इसलिए इस बात की आवश्यकता है कि दीपों के इस पावन पर्व के संदेश को समझते हुए इसे पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाए.

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उत्तर प्रदेश अब उत्तम प्रदेश है. 
उत्तर प्रदेश विकास मॉडल देश में अपनी विशेष पहचान बनाने में सफल होता दिख रहा.

Thursday, October 9, 2025

अत्यंत हर्ष का विषय











अत्यंत हर्ष का विषय!
झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की पावन धरा पर विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र का 36वां क्षेत्रीय खेलकूद समारोह भव्य रूप से आयोजित हुआ।
समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के मा0 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की गरिमामयी उपस्थिति रही।
संगठन मंत्री मा0 हेमचन्द्र जी आशीर्वाद प्राप्त हुआ.

खेलों से आत्मनिर्भर और सशक्त होगा नया उत्तर प्रदेश : मुख्यमंत्री











झांसी, 9 अक्टूबर।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने झांसी की ऐतिहासिक धरती से प्रदेश के खिलाड़ियों को आत्मनिर्भरता और सफलता का मंत्र दिया। विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित 36वें क्षेत्रीय खेलकूद समारोह में पहुंचे सीएम योगी ने खिलाड़ियों को सम्मानित करते हुए कहा कि “स्वस्थ शरीर ही धर्म और राष्ट्र निर्माण का आधार है”। इस अवसर पर उन्होंने भानी देवी गोयल सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में मिनी स्टेडियम निर्माण की घोषणा की और कहा कि खेल अब केवल शौक नहीं, बल्कि जीवन को संवारने का सशक्त माध्यम बन चुका है।

समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य और पराक्रम की धरती पर विद्या भारती के 36वें क्षेत्रीय खेलकूद समारोह में शामिल होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। विद्या भारती देश में भारतीय परंपरा, संस्कृति और राष्ट्रीयता के प्रति श्रद्धा जगाने वाली अग्रणी संस्था है। 1952 में गोरखपुर में नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित इस संस्था ने आज देशभर में 25,000 से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से भारतीय मूल्यों को बढ़ावा दिया है। उन्होंने विद्या भारती के प्रथम छात्र देवेंद्र सिंह को सम्मानित करते हुए कहा कि यह संस्था बिना सरकारी सहयोग के राष्ट्रीय आदर्शों को जीवंत रखने में सफल रही है। उन्होंने कहा कि झांसी की यह धरती राष्ट्रीयता और शौर्य की प्रेरणा देती है। विद्या भारती के प्रयास देश को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
*कार्यक्रम में बुंदेली राई नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों का मोहा मन*
समारोह में सांस्कृतिक रंग भी देखने को मिला। बुंदेली राई नृत्य की प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया। खेलों में उत्कृष्ट उपलब्धि हासिल करने वाले शीलू यादव, आदेश सिंह, शहंशाह, बसंत कुमार गोला और संध्या राजपूत को मुख्यमंत्री ने सम्मानित किया। कार्यक्रम में अनुशासन ट्रॉफी गोरक्ष प्रांत ग्रामीण की टीम को प्रदान की गई, जबकि ओवर ऑल चैंपियनशिप ट्रॉफी काशी प्रांत नगरीय की टीम ने अपने नाम की।

सीएम योगी ने गिनाई विद्या भारती की उपलब्धियां
सीएम योगी ने विद्या भारती की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए कहा कि आज यह संस्था भारत की परंपरा और संस्कृति को मजबूत करने वाली अग्रणी शक्ति बन चुकी है। 1952 में गोरखपुर की धरती पर राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख द्वारा बोए गए बीज से आज देशभर में 25,000 से अधिक शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान संचालित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश में सेक्युलर दिखाने की होड़ ने भारतीय मूल्यों को हाशिए पर धकेला, लेकिन विद्या भारती ने बिना सरकारी सहयोग के गाँव से शहर और वनवासी क्षेत्रों तक शिक्षा का राष्ट्रीय मॉडल खड़ा किया। 
प्रदेश सरकार ने मेरठ में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी स्थापित की है : सीएम
सीएम योगी ने कहा कि आज इस वीरभूमि में पहुंचकर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ‘मेरी झांसी गुलाम नहीं होगी’ का संदेश दिया और 23 वर्ष की आयु में बलिदान दे दिया। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी में भारत को दो बार ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया। आज उनके नाम पर भारत सरकार ने खेल रत्न पुरस्कार और प्रदेश सरकार ने मेरठ में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी स्थापित की है।

सीएम योगी ने खेलों में विद्या भारती की गिनाई उपलब्धियां
मुख्यमंत्री ने गर्व से बताया कि विद्या भारती के खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है।
• 2006 में स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने विद्या भारती को मान्यता दी।
• 2010 में संस्था को फेयर प्ले अवार्ड मिला।
• 2016 में स्वच्छता ट्रॉफी और 2018 में मेडल अपग्रेडेशन अवार्ड प्राप्त हुआ।
• 2019-20 में खिलाड़ियों ने 80 स्वर्ण, 86 रजत और 201 कांस्य पदक जीतकर कुल 367 पदकों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर छठा स्थान पाया।
उन्होंने कहा कि विद्या भारती से जुड़े खिलाड़ियों ने कॉमनवेल्थ, एशियन गेम्स, ओलंपिक और पैरालंपिक तक में पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। ओलंपियन पद्मश्री सुधा सिंह, ओलंपियन निषाद कुमार, शैली सिंह, आदेश सिंह जैसे खिलाड़ी इसी संस्थान से निकले हैं।

आज उत्तर प्रदेश के नागरिकों को पहचान का संकट नहीं है : मुख्यमंत्री
सीएम योगी ने खेल को सर्वांगीण विकास का माध्यम बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए स्वस्थ और सशक्त नागरिक जरूरी है। ‘शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्’ का मंत्र हमारे ऋषियों ने दिया। 2017 से पहले उत्तर प्रदेश बीमारू राज्य था, लेकिन पिछले 8.5 वर्षों में यह देश की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है और जल्द ही नंबर एक बनेगा। सीएम योगी ने कि आज उत्तर प्रदेश के नागरिकों को पहचान का संकट नहीं है। अब जब कोई कहता है कि वह यूपी से है, तो सामने वाले के चेहरे पर गर्व और सम्मान की चमक दिखती है। यह नया उत्तर प्रदेश है, जो अपनी विरासत का भी सम्मान करता है और विकास की राह पर भी तेजी से आगे बढ़ रहा है।

देश सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही है : सीएम योगी
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं संचालित कर रही है। हर गांव में खेल मैदान, विकासखंड में मिनी स्टेडियम, जनपद में स्टेडियम और नगरों में ओपन जिम बनाए जा रहे हैं। खेलो इंडिया, फिट इंडिया और सांसद खेलकूद प्रतियोगिताएं युवाओं को प्रोत्साहित कर रही हैं। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में 500 खिलाड़ियों को सीधे सरकारी नौकरियों से जोड़ा गया है। आगामी भर्तियों में डिप्टी एसपी, तहसीलदार, कानूनगो और खेल अधिकारी जैसे पदों पर सीधी नियुक्तियां की जाएंगी।

खिलाड़ियों को प्रोत्साहन राशि के साथ रोजगार से भी जोड़ रही सरकार : सीएम योगी
मुख्यमंत्री ने कहा कि खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने अब तक 500 खिलाड़ियों को सीधे सरकारी नौकरी दी है। उन्होंने खेल पदक विजेताओं के लिए इनामी राशि का भी उल्लेख किया
*ओलंपिक (एकल खेल)*
• स्वर्ण पदक: ₹6 करोड़
• रजत पदक: ₹4 करोड़
• कांस्य पदक: ₹2 करोड़
*ओलंपिक (टीम खेल)*
• स्वर्ण पदक: ₹3 करोड़
• रजत पदक: ₹2 करोड़
• कांस्य पदक: ₹1 करोड़
*एशियाई खेल*
• स्वर्ण: ₹3 करोड़
• रजत: ₹1.5 करोड़
• कांस्य: ₹75 लाख
*कॉमनवेल्थ खेल*
• स्वर्ण: ₹1.5 करोड़
• रजत: ₹75 लाख
• कांस्य: ₹50 लाख
*वर्ल्ड कप चैंपियनशिप*
• स्वर्ण: ₹1.5 करोड़
• रजत: ₹75 लाख
• कांस्य: ₹50 लाख
*सेफ गेम्स और नेशनल गेम्स (एकल)*
• स्वर्ण: ₹6 लाख
• रजत: ₹4 लाख
• कांस्य: ₹2 लाख
*नेशनल गेम्स (टीम)*
• स्वर्ण: ₹2 लाख
• रजत: ₹1 लाख
• कांस्य: ₹50 हजार
इसके अलावा
• ओलंपिक प्रतिभागी खिलाड़ियों को ₹10 लाख और कॉमनवेल्थ व एशियन खेल प्रतिभागियों को ₹5 लाख की प्रोत्साहन राशि।
• लक्ष्मण पुरस्कार (पुरुष) और रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार (महिला) से सम्मान।
• अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार, खेल रत्न पुरस्कार पाने वाले खिलाड़ियों को ₹20,000 मासिक सहायता।
• वृद्धावस्था में खिलाड़ियों को ₹4,000 से ₹10,000 मासिक पेंशन।
*खेल आत्मनिर्भरता और प्रेरणा का माध्यम बन चुके हैं- मुख्यमंत्री*
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अब खेल को समय और धन का अपव्यय नहीं समझा जाना चाहिए। आज खेल आत्मनिर्भरता और प्रेरणा का माध्यम बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी चाहे पदक जीते या न जीते, उसका जज्बा ही उसे आगे सफलता की ओर ले जाता है।
*भानी देवी गोयल सरस्वती विद्या मंदिर के प्रांगण में बनेगा मिनी स्टेडियम*

उन्होंने भानी देवी गोयल सरस्वती विद्या मंदिर के प्रांगण की सराहना करते हुए कहा कि यहां मिनी स्टेडियम बनाया जाएगा, ताकि भविष्य में खेल आयोजनों को और बेहतर ढंग से आयोजित किया जा सके। सीएम योगी ने विद्या भारती के 49 जनपदों से आए 450 प्रतिभागियों के जज्बे की प्रशंसा की और कहा कि हार-जीत से परे एक खिलाड़ी का हौसला उसे विजयश्री दिलाता है।

Tuesday, October 7, 2025

प्रेरणादायक हैं महर्षि वाल्मीकि के विचार

 

डॉ. सौरभ मालवीय 
विगत एक दशक से देशभर में भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का स्वर्णिम युग चल रहा है। उत्तर प्रदेश सहित देशभर में सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक कार्य तीव्र गति से चल रहे हैं। भारतीय संस्कृति का विश्वुभर में प्रचार-प्रसार हो रहा है। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अथक प्रयासों से ही संभव हो रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार राज्य में धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को निरंतर प्रोत्साहित कर रही है। इसी कड़ी में महर्षि वाल्मीकि जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है। वाल्मीकि जयंती प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे महर्षि वाल्मीकि प्रकट दिवस भी कहा जाता है। इस दिन वाल्मीकि मंदिरों को सजाया जाता है। मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालु सभा का आयोजन करते हैं। मंदिरों में कीर्तन एवं रामायण का पाठ होता है। इस दिन शोभायात्रा भी निकाली जाती है।    
 
योगी सरकार के आदेशानुसार राज्य के सभी जनपदों में वाल्मीकि जयंती हर्षोल्लास से मनाई जा रही है। महर्षि वाल्मीकि से संबंधित सभी स्थलों एवं मंदिरों में दीप प्रज्ज्वलन, दीपदान एवं रामायण के पाठ भी हो रहे हैं। यह कार्यक्रम जनपद, तहसील एवं विकास खंड स्तर पर आयोजित किए जा रहे हैं। इनके सफल आयोजन के लिए शासन ने विशेष प्रबंध किए हैं। आयोजन स्थलों पर स्वच्छता, पेयजल एवं विद्युत आदि का विशेष प्रबंध किया गया है। योगी सरकार ने इसके लिए अधिकारियों को विशेष निर्देश दिए हैं। समन्वय संस्कृति विभाग, सूचना-जनसंपर्क विभाग एवं पर्यटन एवं संस्कृति परिषद मिलकर कार्य कर रहे हैं। योगी सरकार धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दे रही है।    
 
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व देश के अनेक स्थानों पर वाल्मीकि जयंती केवल वाल्मीकि समाज के लोगों तक ही सीमित थी। केवल वाल्मीकि मंदिरों में ही वाल्मीकि जयंती पर कार्यक्रमों का आयोजन होता था। पूर्वाग्रहों अथवा अपरिहार्य कारणों से वाल्मीकि जयंती मनाने का समाज में अधिक चलन नहीं था। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के प्रयासों ने वाल्मीकि जयंती व्यापक स्तर पर धूमधाम से मनाई जाने लगी है। अब यह एक बड़ा पर्व बन चुकी है।  
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाल्मीकि जयंती पर लोगों को शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि सामाजिक समानता और सद्भावना से जुड़े उनके अनमोल विचार आज भी भारतीय समाज को सिंचित कर रहे हैं। मानवता के अपने संदेशों के माध्यम से वे युगों-युगों तक हमारी सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य धरोहर बने रहेंगे। महर्षि वाल्मीकि के विचार आज भी भारतीय समाज को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि के आदर्श लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि गरीब और दलितों के लिए आशा की किरण हैं। उनकी सरकार के कदम महर्षि वाल्मीकि के विचारों से प्रेरित हैं। भगवान राम के आदर्श आज भारत के कोने-कोने में एक-दूसरे को जोड़ रहे हैं, इसका बहुत बड़ा श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही जाता है।
 
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि का योगदान 
महर्षि वाल्मीकि का भारतीय संस्कृति में जो स्थान है, वह किसी अन्य को प्राप्त नहीं है। उन्हें आदिकवि भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने रामायण नामक महाकाव्य की रचना की थी। यह संस्कृत का प्रथम महाकाव्य है। 
धार्मिक पवित्र ग्रंथ रामायण की रचना करके वे घर-घर में विराजमान हो गए। उन्होंने रामायण की संस्कृत में रचना की थी। इसे वाल्मीकि रामायण भी कहा जाता है। यह मौलिक ग्रंथ है। इसके पश्चात अनेक भाषाओं में रामायण लिखी गई, परंतु सबका आधार यही संस्कृत की वाल्मीकि रामायण ही थी। वाल्मीकि रामायण का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 
 
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम का जीवन दर्शन जनसाधारण तक पहुंचाने का कार्य किया। मान्यता है कि रामायण लिखने की प्रेरणा उन्हें एक पक्षी से प्राप्त हुई थी। एक समय की बात है कि वाल्मीकि ने एक वृक्ष की शाखा पर बैठे क्रौंच पक्षी के एक युगल को देखा। वह युगल प्रेमालाप में लीन था। वाल्मीकि उस युगल को एकटक निहार रहे थे, तभी नर पक्षी को बहेलिये का एक तीर आकर लगा और वह वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गया। अपने साथी की मृत्यु पर मादा पक्षी वेदना से तड़प उठी और विलाप करने लगी। उसके वेदनापूर्ण विलाप को सुनकर वाल्मीकि को अत्यंत दुख हुआ। वे उसकी पीड़ा से द्रवित हो उठे। इसी अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही एक श्लोक निकला-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थात हे दुष्ट, तुमने प्रेम में लीन क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी तथा तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
 
मान्यता यह भी है कि वाल्मीकि आदिकवि होने के साथ-साथ खगोल एवं ज्योतिष विद्या के भी ज्ञाता थे। इसका आधार यह है कि उन्होंने अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र व अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे इन विद्याओं का ज्ञान हो।
 
महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के पुरोधा भी हैं। उन्होंने रामायण के माध्यम से श्रीराम के महान चरित्र से लोगों को अवगत करवाया है। उनके कारण ही अनंतकाल तक जनसाधारण श्रीराम से जुड़ा रहेगा। रामायण से ही हमें श्रीराम को जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। वे एक आदर्श पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन का पालन करने के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया। उन्होंने राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन को पूर्ण करने के लिए अपना राज सिंहासन त्याग कर चौदह वर्ष का वनवास प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार कर लिया। उन्होंने माता कैकेयी की प्रसन्नता के लिए वनवास स्वीकार किया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि उनके लिए पिता के वचन एवं माता की प्रसन्नता से अधिक कुछ भी महत्व नहीं रखता। उन्होंने वैभवशाली एवं ऐश्वर्य का जीवन त्याग दिया तथा वन में रहना उचित समझा। उन्होंने अपने पिता की मनोव्यथा एवं उनकी विवशता को हृदय से अनुभव किया। वे बिना किसी अनर्द्वन्द्व के वनवास के लिए चले गए। यह कोई सरल कार्य नहीं था, परंतु उन्होंने ऐसा कठोर निर्णय लिया। कुछ समय पूर्व ही उनका विवाह हुआ था। उन्हें अपनी पत्नी के साथ सुखमय दाम्पत्य जीवन का प्रारंभ करना था। श्रीराम के साथ-साथ उनकी पत्नी ने भी त्याग किया। जो सीता राजभवन में पली थीं। उन्होंने भी राजभवन का सुख त्याग कर पति के साथ वन में जाना चुना। इसी प्रकार श्रीराम के छोटे भ्राता लक्ष्मण ने भी अपने भाई और भाभी की सेवा के लिए वन में जाने का निर्णय लिया। वनवास तो केवल श्रीराम के लिए था, परंतु सीता और लक्ष्मण ने भी वनवास का स्वेच्छा से चयन करके यह सिद्ध कर दिया की उनके लिए श्रीराम से बढ़कर कुछ भी नहीं है। भरत ने भी हाथ में आया राजपाट त्याग दिया तथा अपनी माता कैकेयी से स्पष्ट रूप से कह दिया कीस राज सिंहासन पर केवल श्रीराम का ही अधिकार है। इसलिए वे इसे स्वीकार नहीं कर सकते। वास्तव में रामायण एक ऐसी कथा है, जो परिवार एवं समाज में आदर्श स्थापित करती है। 
 
किंवदंती है कि श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता का त्याग कर दिया था। इस प्रकार माता सीता को पुन: वन में आना पड़ा। उस समय महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता को अपने आश्रम में शरण दी थी। माता सीता अपना परिचय सबको नहीं देना चाहती थीं, इसलिए महर्षि ने उन्हें वन देवी का नाम दिया था। यहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ था। यहीं लव और कुश ने अश्वमेघ को पकड़ा था और यहीं उनकी अपने पिता श्रीराम से भेंट हुई थी। महर्षि वाल्मीकि ने भारतीय जनमानस में राम के मर्यादित जीवन और सामाजिक जीवन को स्थापित किया।
(लेखक - सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अध्येता हैं)

 

महर्षि वाल्मीकि जयंती



लखनऊ। विराम खंड बस्ती के महर्षि वाल्मीकि जयंती एवं शरद पूर्णिमा उत्सव के अवसर पर उपस्थित नागरिक व स्वयंसेवक बन्धुओं के साथ रहने का अवसर मिला.
पूरा मानव समाज मह​र्षि वाल्मीकि जी के प्रति कृतज्ञ है, जिन्होंने प्रभु श्री राम के ऐसे आदर्श चरित्र का चित्रण किया, जो हर काल और परिस्थिति में प्रासंगिक एवं प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
'त्रिकालदर्शी' के श्री चरणों में कोटिश: नमन!

Monday, October 6, 2025

टीवी पर लाइव



बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गयी आज.
एनडीए फिरसे सरकार में रहेगी यही अनुमान दिख रहा ओपनिंयन पोल से.

अंधेरे पर प्रकाश की जीत का पर्व है दीपावली

डॊ. सौरभ मालवीय असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ अर्थात् असत्य से सत्य की...